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आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने संपूर्ण स्वदेशी से जोड़कर उस समय जीवंत किया जब हम अपनी अस्मिता के लिए संघर्षरत थे। गांधीजी ने देश को स्वाभिमान का मार्ग अपने जीवन दर्शन से दिखाया, जिसकी आधारशिला थी संपूर्ण स्वदेशी। गांधीजी का मत था कि हमारी आजादी तभी संपूर्ण होगी जब अपनी आवश्यकता की वस्तुओं का निर्माण स्वयं करने में सक्षम होंगे। इसके लिए यह आवश्यक नहीं कि भारी-भरकम तकनीक का प्रयोग किया जाए। 'अंबर-चरखे' जैसी सामान्य सुलभ तकनीक से भी संपूर्ण समाज अपनी जरूरत की वस्तुओं का निर्माण व उपयोग कर सकता है। यह था गांधीजी का स्वप्न: सहज, सरल, सर्व सुलभ अर्थात संपूर्ण स्वदेशी। गांधीजी का यही स्वदेशी विचार जो बेरोजगारी पर भी कारगर प्रहार था, हमारी आजादी का आधार बन गया। स्वदेशी का चरखा संपूर्ण भारत में शहर-शहर और गांव-गांव में सर्वव्यापी और घर-घर की कार्यप्रणाली का आवश्यक अंग हो गया। इसने गांधीजी को बापू बना दिया और बापू चिरंतन शाश्वत आत्मा के प्रतीक बन गए जो हमारी प्रत्येक समस्या के समाधान का सरलतम मार्ग सुझाने की क्षमता रखती है। उत्तर प्रदेश खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड एवं अमर उजाला उन्हीं आदर्श को स्मरण करने का और नई पीढ़ी में अपने आदर्श मानव को जानने की जिज्ञासा पूर्ति के लिए अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं। इसी श्रृंखला में संपूर्ण स्वदेशी की अवधारणा के व्यापक प्रचार प्रसार के लिए आयोजित है: "संपूर्ण स्वदेशी"। ये अभिव्यक्ति है बापू के प्रति सम्मान की और नमन है उस जीवन को जो स्वयं आदर्श हो गया। उन आदर्शों में स्वच्छता, आत्मनिर्भरता, सर्वधर्म समभाव और स्वदेश व स्वदेशी से प्रेम सर्व प्रमुख थे, जिनको गांधीजी ने सामान्य मानव के जीवन से जोड़कर जन आंदोलन बना दिया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के 152वें जन्म दिवस के अवसर पर उत्तर प्रदेश खादी तथा ग्रामोद्योग बोर्ड एवं अमर उजाला राष्ट्र की युवा पीढ़ी का आह्वान करता है कि आइए, हम अपनी रचनाओं के माध्यम से उसी जन आंदोलन से जुड़े और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संपूर्ण स्वदेशी के स्वप्न को साकार करें।